बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति से आप क्या समझते हैं? मनुष्य या ड्रोसोफिला के सन्दर्भ में इस परिघटना का उदाहरणों सहित विवेचन कीजिए।
अथवा
लिंग सहलग्नता पर एक निबन्ध लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. लाल - हरी वर्णान्धता एवं हीमोफिलिया की मनुष्य की संतान में वंशागत होने की विभिन्न संभावनाओं का उल्लेख कीजिए।
2. एक वर्णान्ध स्त्री का विवाह एक सामान्य पुरुष से किया गया। इनके सन्तति में वर्णान्धता की कितनी संभावना होगी?
3. मनुष्य के होलेंड्रिक जीन्स पर टिप्पणी लिखिए।
4. हीमोफीलिया पर टिप्पणी लिखिए।
5. होलेंड्रिक जीन क्या है? इसकी आनुवंशिकता के क्रम का मनुष्य में उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर -
लिंग सहलग्न वंशागति या लिंग सहलगता
(Sex-linkage or Sex-linked Inheritance)
समस्त प्राणियों में लिंग गुणसूत्रों का एक युग्म होता है। अधिकांश जीवों में इन्हें X गुणसूत्र तथा Y गुणसूत्र कहते हैं। लिंग का निर्धारण करने के अलावा इन गुणसूत्रों पर दैहिक लक्षणों के भी कुछ जीन होते हैं। लिंग गुणसूत्रों पर स्थित दैहिक (somatic) लक्षणों के जीन को लिंग सहलग्न जीन (sex-linked genes) कहते हैं। अतः दैहिक लक्षणों के वे जीन जो लिंग गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं और उसी लिंग गुणसूत्र के साथ वंशागत होते हैं, लिंग सहलग्न जीन कहलाते हैं तथा इनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति (sex-linked inheritance) कहा जाता है। ऐसी वंशागति की खोज टी. एच. मॉर्गन (T. H. Morgan, 1910-11) ने ड्रोसोफिला (Drosophila) मक्खी पर किये गये अपने प्रयोगों द्वारा की। मनुष्य में लगभग 120 दैहिक लक्षण लिंग-सहलग्न पाये जाते हैं।
हालांकि X और Y लिंग गुणसूत्रों की रचना भिन्न होती है फिर भी युग्मकजनन (gametogenesis) में अर्धसूत्री विभाजन (meiosis division) के समय इनका युग्मन अर्थात् सिनैप्सिस (pairing or synapsis) होता है। यह युग्मन अन्य समजात (homologous) जोड़ियों के गुणसूत्रों के विपरीत लिंग गुणसूत्रों की पूरी लम्बाई में न होकर इनके एक-एक छोटे से खण्डों के बीच ही होता है। इससे स्पष्ट है कि ये छोटे खण्ड इनके समजात खण्ड (homologous or pairing segments) होते हैं। शेष इनके अपने अलग-अलग असमजात खण्ड (non-homologous or differential segments) होते हैं। इसी के अनुसार लिंग सहलग्न लक्षणों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है
1. X- सहलग्न लक्षण (X-linked Characters) - के जिनके जीन्स X गुणसूत्र के असमजात (nonhomologous) खण्ड पर होते हैं। साथी Y गुणसूत्र पर इन जीन्स के ऐलील (alleles) नहीं होते। अतः ये जीन्स पुत्रियों को माता और पिता दोनों से तथा पुत्रों को केवल माता से मिलते हैं। मानव में अधिकांश लिंग सहलग्न गुण X- सहलग्न ही होते हैं। अतः सामान्यतः लिंग सहलग्न ता का अर्थ X- सहलग्न ता से ही लगया जाता है।
2. Y- सहलग्न या होलैण्ड्रिक लक्षण (Y-linked or Holandric Characters) - वे जिनके जीन्स Y गुणसूत्र के असमजात खण्ड पर होते हैं। अतः साथी X गुणसूत्र पर इनके ऐलील नहीं होते। स्पष्ट है कि ऐसे लक्षण केवल पुरुषों में होते हैं और इनके जीन्स पीढी दर पीढ़ी पिता से पुत्रों में ही जाते हैं। अतः इन्हें होलैन्ड्रिक जीन्स (holandric genes) और इनकी वंशागति को होलैन्ड्रिक वंशागति (holandric inheritance) कहते हैं। कर्णपल्लवों (ear pinnae) पर लम्बे-लम्बे और कुछ मोटे बालों की उपस्थिति एक ऐसा ही लक्षण होता है। इसे हाइपरट्राइकोसिस (hypertrichosis of ears) कहते हैं।
हाल ही में, मानव में कुछ अन्य होलैण्ड्रिक जीनों के विषय में सूचित किया गया है, जैसे- H-Y एण्टीजेन के लिए जीन, हिस्टोकॉमपैटिबिलिटी एन्टीजेन, शुक्रजनन, ऊँचाई तथा प्राणियों में धीमी परिपक्वता | H-Y एन्टीजेन का Y सहलग्न जीन Y गुणसूत्र की छोटी भुजा पर स्थित होता है, जबकि शुक्रजनन को नियंत्रित करने वाले जीन Y गुणसूत्र की लम्बी भुजा पर होते हैं। ड्रोसोफिला के Y गुणसूत्र में भी नर उर्वरता के लिए Y सहलग्न जीन होते हैं।
पोर्कपाइन मानव (Porcupine Man) - यह एक अंग्रेज था जिसका नामकरण एडवर्ड लैम्बर्ट (Edward Lambert) ने किया था। इस अंग्रेज व्यक्ति का जन्म सन् 1717 ई. में हुआ था। इसकी त्वचा छाल की तरह मोटी थी जो समय-समय पर निकल जाती थी। इसके शरीर पर पाए जाने वाले बाल काँटे सदृश थे जिसके कारण इससे 'पोर्कपाइन मानव' कहते थे। इसके छः पुत्र थे, जिनमें सभी में ये लक्षण उपस्थित थे। यह लक्षण पिता से पुत्र में चार पीढ़ियों से होकर पारगत हुआ था। किसी भी पुत्री में यह लक्षण उपस्थित नहीं था। वास्तव में, यह लक्षण कभी भी मादाओं में प्रकट नहीं हुआ। अतः यह माना गया कि यह लक्षण होलैण्ड्रिक या Y सहलग्न जीन के कारण उत्पन्न होता है।
3. XY- सहलग्न लक्षण (XY-linked Characters) - वे जिनके जीन्स X एवं Y गुणसूत्रों के समजात (homologous) खण्डों पर ऐलील्स के रूप में होते हैं। स्पष्ट है कि इनकी वंशागति, पुरुषों एवं स्त्रियों में सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों की भाँति होती है। इन्हें अधूरे लिंग सहलग्न (incompletely sex-linked) लक्षण कहते हैं। पूर्ण वर्णान्धता (total colourblindness), नेफ्राइटिस (nephritis - गुर्दों का एक रोग) एवं कुछ अन्य रोग ऐसे ही आनुवंशिक होते हैं।
(I) मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति
(Inheritance of Colourblindness in Man)
लाल-हरे रंग की वर्णान्धता एक अप्रभावी X- सहलग्न लक्षण है। इसका जीन X गुणसूत्र के असमजात भाग पर स्थित होता है। Y गुणसूत्र पर इसका ऐलील (allele) नहीं होता क्योंकि पुरुष में केवल एक X गुणसूत्र होता है, अतः इनमें वर्णान्धता का एक जीन होने पर ही एक लक्षण विकसित हो जाता है। स्त्री में इस लक्षण के विकसित होने के लिए वर्णान्धता के दो अप्रभावी जीनों की आवश्यकता होती है जिनमें से प्रत्येक जीन एक गुणसूत्र पर स्थित होता है।
वर्णान्धता के जीन वाले X गुणसूत्र को XC से तथा सामान्य दृष्टि वाले जीन को X से, प्रदर्शित करने पर विभिन्न संकरण (cross) को निम्नलिखित प्रकार से प्रकट कर सकते हैं -
1. वर्णाध स्त्री तथा सामान्य पुरुष (Colourblind Woman and Normal Man) - वर्णान्ध स्त्री का सामान्य पुरुष से विवाह होने पर उनके सभी पुत्र वर्णान्ध तथा पुत्रियाँ सामान्य दृष्टि वाली होती हैं। किन्तु ये सभी पुत्रियाँ वर्णान्धता के लिए वाहक होती हैं क्योंकि इनमें एक X गुणसूत्र पर सामान्य दृष्टि का जीन होता है तथा दूसरे X गुणसूत्र पर वर्णान्धता XC का जीन होता है।
स्पष्टीकरण (Explanation)
1. सभी पुत्र वर्णान्ध होते हैं क्योंकि इन्हें X c गुणसूत्र माता से प्राप्त होता है।
2. पुत्रियों को सामान्य दृष्टि वाले जीन का X गुणसूत्र पिता से तथा वर्णान्धता के जीन वाला XC गुणसूत्र माता से प्राप्त होता है क्योंकि सामान्य दृष्टि वाला जीन प्रभावी (dominant) होता है, सभी पुत्रियों की दृष्टि सामान्य होती है किन्तु ये विषमयुग्मजी (XXC) होने के कारण वाहक (carriers) का कार्य करती हैं।
2. वर्णान्ध पुरुष एवं सामान्य स्त्री (Colourblind Man and Normal Woman) वर्णान्ध पुरुष द्वारा सामान्य दृष्टि वाली स्त्री से विवाह करने पर उसकी सभी सन्तान पुत्र एवं पुत्रियाँ सामान्य दृष्टि वाली होती हैं।
3. वाहक स्त्री एवं सामान्य पुरुष (Carrier Woman and Normal Man)- वाहक स्त्री का सामान्य पुरुष से विवाह होने पर उसकी सभी पुत्रियाँ सामान्य होंगी किन्तु 50% पुत्र वर्णान्ध हो सकते हैं।
4. वाहक स्त्री वर्णान्ध पुरुष (Carrier Woman and Colourblind Man) - वाहक स्त्री द्वारा वर्णान्ध पुरुष से विवाह करने पर उसकी पुत्री भी वर्णान्ध हो सकती है।
(II) मनुष्य में हीमोफिलिया की वंशागति : रक्तस्रावण रोग
(Inheritance of Haemophilia in Man : Bleeder's Disease)
हीमोफिलिया भी मनुष्य का एक लिंग सहलग्न रोग है। एक सामान्य व्यक्ति में चोट पर औसतन 2 से 8 मिनट में रुधिर का थक्का (clot) जम जाता है जिससे रुधिर का बहना बन्द हो जाता है। हीमोफिलिया के रोगियों में चोट पर काफी समय (1/2 से 24 घण्टे) तक रुधिर में कुछ प्रोटीन्स की कमी के कारण थक्का नहीं जमता और रुधिर बराबर बहता रहता है। इसीलिए इसे रक्तस्राव रोग (bleeder's disease) भी कहते हैं। शीघ्र उपचार न हो तो अत्यधिक रक्तस्राव के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है।
हीमोफिलिया का रोग यूरोप के शाही परिवारों में अति सामान्य रूप से पाया जाता था। हीमोफिलिया की वंशागति के सम्बन्ध में कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं-
1. हीमोफिलिया रोग अधिकतर परिवार के पुरुषों में ही पाया जाता है।
2. स्त्रियों में यह रोग बहुत कम देखा गया है क्योंकि या तो भ्रूणावस्था में मर जाती है अथवा फिर यौवनारम्भ के समय इनकी मृत्यु हो जाती है।
3. स्त्रियों में यह रोग केवल उस दशा में होता है जब दोनों X गुणसूत्रों पर इसका जीन होता है अर्थात् जब गुणसूत्र Xhx होते हैं।
4. पुरुषों में केवल एक X गुणसूत्र होता है अतः ये केवल एक ही हीमोफिलिक जीन के होने पर ही हीमोफिलिक हो जाते हैं।
हीमोफिलिया रोग निम्नलिखित अवस्थाओं में हो सकता है।
1. हीमोफिलिक नर द्वारा सामान्य मादा से विवाह करने पर (When a Haemophilic Male Marriage a Normal Female) - ऐसी स्थिति में अमुक व्यक्ति के समस्त पुत्र एवं पुत्रियाँ नान- हीमोफिलिक होंगी। किन्तु पुत्रियाँ इस रोग की वाहक होती हैं क्योंकि इनको एक सामान्य X- गुणसूत्र माता से तथा हीमोफिलिया के जीन से सहलग्न X - गुणसूत्र पिता से प्राप्त होता है, क्योंकि यह जीन अप्रभावी होता है। अतः यह स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। दूसरी ओर पुत्रों को सामान्य X गुणसूत्र माता से तथा बिना हीमोफिलिक जीन वाला Y गुणसूत्र पिता से मिलता है, अतः सभी पुत्र सामान्य होते हैं।
2. F पीढ़ी की वाहक पुत्री का सामान्य व्यक्ति से विवाह होने पर उसके 50% पुत्र ही हीमोफिलिक होंगे। वाहक पुत्रियों का हीमोफिलिक पुरुष से विवाह होने पर आधी पुत्रियाँ व आधे पुत्र हीमोफिलिक होंगे। इससे स्पष्ट है कि वाहक स्त्री एवं अप्रभावी हीमोफिलिक व्यक्ति का विवाह होने पर ही पुत्रियाँ हीमोफिलिक होंगी।
3. हीमोफिलिक स्त्री द्वारा सामान्य पुरुष से विवाह करने पर उसके सभी पुत्रों में हीमोफिलिया रोग होगा किन्तु पुत्रियों में यह रोग नहीं होगा अर्थात् वे नान- हीमोफिलक होंगी।
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- प्रश्न- जिआर्डिया में प्रजनन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।